सारी दुनिया को जीतकर भी,
आज जिसमेँ, बना उस एक के लिए किनारा मैँ...
कोई तो वजह है कि मन करता है,
आज उसके लिए खेल खेलूँ , पलट दूँ कायनात का इतिहास और आज बस बन जाउँ उसी का हरकारा मैँ...
अजीब उलझन है रिश्तोँ की पहेलीयाँ भी,
कहाँ से उठा कहाँ आकर मिला,
क्युँ बन गया आज उस एक के लिए इतना प्यारा मैँ...
आज उस एक से हारा मैँ...पता नहीँ क्या मँजर था व
क्युँ आया था तूफान इतना,आज जिसमेँ, बना उस एक के लिए किनारा मैँ...
कोई तो वजह है कि मन करता है,
आज उसके लिए खेल खेलूँ , पलट दूँ कायनात का इतिहास और आज बस बन जाउँ उसी का हरकारा मैँ...
अजीब उलझन है रिश्तोँ की पहेलीयाँ भी,
कहाँ से उठा कहाँ आकर मिला,
क्युँ बन गया आज उस एक के लिए इतना प्यारा मैँ...